सत्य साधू ओळखाया | बुद्धि द्यावी गणराया ||

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    26-Apr-2018   
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सत्य साधू ओळखाया | बुद्धि द्यावी गणराया ||

 
जयजयाजी गणनायका | कृपा करा वरदायका |
बुद्धि द्यावी अज्ञ लोकां | साधू खरा ओळखाया ||१||
 
कलिमाजी सांप्रत काळी | बुद्धिभेद जाला प्रबळी |
संत-संत म्हणती सकळी | भोंदू आणिक ढोंग्यांसी ||२||
 
परि त्वा करावे प्रबोधन | भ्रम शंकांचे ते निरसन |
असंतांचे करण्या निर्दालन | द्यावा विवेक प्रसाद ||३||
 
बहुत जाले संत महंत | तैसेचि ऋषिमुनी पंत-तंत |
राजर्षि आणिक राष्ट्रसंत | रत्नप्रसवा भूवरी या ||४||
 
आधी केले स्वतः साधन | अध्यात्मविद्येचे रसायन |
प्राशन केले स्वये आपण | मग दिधले भक्तांसि ||५||
 
पूर्वापार चालिती प्रमाण | राखिला गा तयाचा मान |
अहंकार दंभादि अज्ञान | दूर केले ज्ञानप्रकाशे ||६||
 
विश्व मिथ्या देह नश्वर | सत्य जाणिले सत्वर |
अविद्येचे भेदिले घर | ब्रह्मविद्या अनुभवे ||७||
 
काम, क्रोध गेले बळीं | लोभ, मोह स्वये उन्मळी |
मद, मत्सर धूम्रमेळी | उन्नयन अंतर्यामि ||८||
 
स्वये केले धर्माचरण | करोनि अधर्माचे उच्चाटण |
करावया पाखंड खंडन | शब्दखड्ग धारण केले ||९||
 
तिन्ही एषणांचे स्वामित्व | रंजल्यां गांजल्यां ममत्त्व |
सदाचरण सत्संग सत्व | प्रस्थापिले निकांमाजी ||१०||
 
सकळांसी देवा सांगावे | संतलक्षण पुन्हा निरुपावे |
पुन्हा एकदा दाखवावे | विराट रूप धर्माचे ||११||
 
कलिबल आता वाढले | थैमान दुर्जनांनी मांडले |
संस्कारांचे बंधन तोडले | संत म्हणविती भोगी ||१२||
 
बळें भ्रष्टविती परदारा | मद – मत्सराचा पिसारा |
काम क्रोधाचा वाहतो झरा | पाऊणशे वयोमानीही ||१३||
 
उपभोग थांबवी न जरा | धनिक भक्तांवरी नजरा |
चाड मनाची न जरा | भयही नसे कर्माचे ||१४||
 
अज्ञानाचा करिती कहर | जमवूनि मूर्खांचे नगर |
विवेकाचा करुनि अव्हेर | बाजार मांडिला धर्माचा ||१५||
 
भक्त देखील अंध जाले | सत्यासत्यासि न पुसले |
सांगोवांगी विसंबले | मेंढरांची स्थिती बरी ||१६||
 
वर्तनासि या क्षमा नाही | अधर्म सदाचि यमा पाही |
नीतिची परि तमा काही | बाळगावीच सर्वांनी ||१७||
 
असंतांचा व्हावा उच्छेद | नीर-क्षीरे करावा भेद |
धर्मापासुनि विच्छेद | एकघावे करावा त्वरे ||१८||
 
देव, नाव, होम, हवन | स्थान, मान, दान, स्तवन |
कीर्ति, मूर्ती, भजन, भवन | भुलू नये कशासिही ||१९||
 
शुचि, द्युति, मति, नीति | कृती, प्रीति, धृति, स्फूर्ती |
तृप्ती, दीप्ति, सत्प्रवृत्ती | जाणावी संतलक्षणे ||२०||
 
म्हणोनि बुद्धि द्या गणराया | देव देश धर्म ताराया |
आणिक साधु ओळखाया | प्रार्थना करी सदाशिव ||२१||
 
|| लेखनसीमा ||
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